सभी किसान भाईयो को नमस्ते तो अभी आने वाला है रबी का सीजन जिसमे गेहूं, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, हरा चारा, मसूर, आलू, राई,तम्बाकू, लाही, जई, अलसी और सूरजमुखी आदि और भी कई प्रमुख रबी की फसलों की बुआई रबी के सीजन मे होती है जिसमे हम अब जानेंगे चने के बारे मे की किस प्रकार इसकी पैदावार बढ़ाई जा सके

रबी का सीजन कब शुरू होता है ?
रबी ऋतु की फसलें या इसे शीत ऋतु की फसलें कहे दोनों एक ही है – रबी की फसलों की बुआई सामान्यतः अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में होती है और इनकी कटाई अप्रैल से मई माह तक हो जाती है।
आइये जानते हैं चने की खेती के बारे मे
रबी की प्रमुख फसल कही जाने वाली इस फसल की बुआई लगभग आधे से ज्यादा भारत मे की जाती है और किसानो की बेहतर आय का प्रमुख स्तंभ हैं तो आइये जानते है चने की बेहतरीन किस्मों के बारे मे जो देगी बंपर पैदावार
राजस्थान के लिए चने की सर्वोत्तम किस्मे
रवींद्र – यह किस्म राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसमें अच्छी पैदावार होती है और यह रोगों के प्रति भी प्रतिरोधी है।
जीजी-1 (GG-1) – यह किस्म भी राजस्थान के लिए अच्छी मानी जाती है। इसमें अच्छे दाने होते हैं और यह सूखे के प्रति सहनशील है।
जीजी-2 (GG-2) – यह भी एक उच्च पैदावार देने वाली किस्म है और इसके दाने बड़े होते हैं।
पीबीजी-5 (PBG-5) – यह किस्म भी राजस्थान के लिए उपयुक्त है और इसमें भी अच्छी पैदावार होती है।
राजीव लोचन – यह किस्म भी राजस्थान के लिए उत्तम मानी जाती है और यह सूखे और रोगों के प्रति सहनशील होती है।
किस्में:रवींद्र: उच्च पैदावार, रोग प्रतिरोधी।
जीजी-1 (GG-1): अच्छे दाने, सूखा सहनशील।
जीजी-2 (GG-2): उच्च पैदावार, बड़े दाने।
पीबीजी-5 (PBG-5): अच्छी पैदावार।
राजीव लोचन: सूखा और रोग प्रतिरोधी।
जलवायु: शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु।
मिट्टी: दोमट मिट्टी, pH 6-7।
बुवाई का समय: अक्टूबर से नवंबर।
उर्वरक: नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश।
सिंचाई: 2-3 सिंचाई की आवश्यकता।
रोग और कीट: उकठा रोग, चने की इल्ली; नियंत्रण हेतु जैविक और रासायनिक उपाय।
कटाई और संग्रहण: फसल पकने पर कटाई, अच्छी तरह सुखाकर संग्रहण।
उत्पादन: 1-1.5 टन प्रति हेक्टेयर।
चना (चने) की पैदावार बढ़ाने के लिए कुछ प्रमुख तरीके
बीज का चुनाव और तैयारी: उच्च गुणवत्ता वाले और रोगमुक्त बीजों का चयन करें। बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक से उपचारित करें।
भूमि की तैयारी: भूमि को अच्छी तरह से जोतें और उसमें जैविक खाद मिलाएं। मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने के लिए हरी खाद का उपयोग करें।
बुवाई का समय: उचित समय पर बुवाई करें। सामान्यत: चने की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है।
जल प्रबंधन: सिंचाई की सही व्यवस्था करें। चने को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन सूखे के समय हल्की सिंचाई आवश्यक है।
खाद और उर्वरक: संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग करें। जैविक खाद का भी प्रयोग करें।
रोग और कीट नियंत्रण: समय-समय पर फसलों की जांच करें और आवश्यकतानुसार कीटनाशक और फफूंदनाशक का उपयोग करें।
फसल चक्र और मिश्रित खेती: फसल चक्र का पालन करें और मिश्रित खेती करें। इससे मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती है और फसल पर रोग और कीट का प्रकोप कम होता है।
निराई-गुड़ाई: समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें जिससे फसल को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें और खरपतवारों का नियंत्रण हो सके। पौधों की बढ़वार अधिक होने पर बुवाई के 30-40 दिन बाद पौधे के शीर्ष भाग को तोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से पौधों में शाखाएं अधिक निकलती है व फूल भी अधिक आते हैं, फलियां भी प्रति पौधा अधिक आती है। जिससे पैदावार अधिक प्राप्त होती है। पर इस बात का ध्यान रखें कि नीपिंग कार्य फूल वाली अवस्था पर कभी भी नहीं करें। इससे उत्पादन पर विपरित असर पड़ सकता